किसानों को अच्छा खासा होगा फायदा कालानमक की इस खेती से , प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल का होगा उत्पादन

 किसानों को अच्छा खासा होगा फायदा कालानमक की इस खेती से , प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल का होगा उत्पादन |



                                                         photo from google.

 नई दिल्ली अपनी महक, स्वाद और पोषक तत्वों के लिए दुनिया भर में मशहूर काले नमक की कम उपज किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है. इस वजह से अधिकांश किसानों में इसे बोने की हिम्मत नहीं है, लेकिन किसानों की यह समस्या जल्द ही हल होने वाली है. बौना काला नमक की खेती कर किसान अपने खेत का लगभग दोगुना उत्पादन दे सकेंगे. इसकी सुगंध, स्वाद और चावल में जितने पोषक तत्व होते हैं, सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा. इससे काला नमक की खेती को मजबूती मिलेगी और किसानों को इसका अच्छा लाभ भी मिलेगा.


प्रति हेक्टेयर खेती पर तीस से चालीस हजार रुपये का खर्चा 

एक हेक्टेयर काला नमक की खेती में करीब तीस से चालीस हजार रुपये खर्च होते हैं. अच्छी फसल होने पर प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल धान का उत्पादन होता है, लेकिन बौने काले नमक की खेती से प्रति हेक्टेयर 45 से 50 क्विंटल उत्पादन मिलेगा. खर्चा भी वही रहेगा. 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली (IARI) पिछले तीन वर्षों से गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीरनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गोंडा सहित 11 जिलों में अपने कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से धान की कई नई किस्मों की बुवाई कर चुका है.
बौने काले नमक का उत्पादन पिछले तीन वर्षों में सबसे अच्छा रहा है. कृषि विभाग का मानना ​​है कि आईएआरआई जल्द ही बौने धान को अपनी नई प्रजाति घोषित कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो यहां के किसानों को काला नमक की खेती से अच्छा लाभ मिलेगा. 

बौने काले नमक का उत्पादन पिछले तीन वर्षों में सबसे अच्छा रहा है. कृषि विभाग का मानना ​​है कि आईएआरआई जल्द ही बौने धान को अपनी नई प्रजाति घोषित कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो यहां के किसानों को काला नमक की खेती से अच्छा लाभ मिलेगा. 


इसलिए एक नई प्रजाति की आवश्यकता

पुराने या पारंपरिक कलानामक का उत्पादन पूषा और अन्य खेतों में अच्छा पाया गया है, लेकिन पूर्वांचल की मिट्टी में उत्पादन अच्छा नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पारंपरिक काला नमक का पौधा बौने काले नमक से लगभग दो गुना लंबा होता है. थोड़ी सी हवा चलने पर यह गिर जाता है. इससे उत्पादन में फर्क पड़ता है. जबकि पौधा छोटा होगा तो फसल नहीं गिरेगी और उत्पादन भी बेहतर होगा. 

कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किए गए परीक्षणों में बौने काले नमक का उत्पादन अच्छा रहा है. आईएआरआई बौने चावल के अलावा कई प्रायोगिक किस्मों पर काम कर रहा है. गोरखपुर की मिट्टी में बौना काला नमक अच्छे परिणाम दे रहा है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इस नई प्रजाति की घोषणा कर दी जाएगी.


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